ये रात थोड़ी अजीब है,
सर्द स्याह बेजान सी लगती है.
"क्यू तुम्हे कुछ याद आया क्या
दूर कोई पपिहा कुछ गुनगुनया क्या
फिर किसने छेड़ा है राग दिल का
रात क्यू सर्द लगी आज की?"
मालूम ऩही,
कुछ हलचल सी है
कुछ गुमसूँ सी है
जैसे कुछ घबराई हुई सी है
"ये हलचल नहीं,
ये पहला संदेशा तुमने है पाया
इन सर्द हवाओं ने तुम्हें है पहुँचाया
ये प्रीत की पहली चिठी लिखी होगी उसने"
क्या संदेश है उसमे?
तुम जानते हो क्या?
कुछ बुरा तो नही है?
सब ठीक होगा ना?
"पन्ने तो नए हैं, सुर्ख गुलाबी रंगों के,
कई सिलवटे भी पड़ी है इनपे करारी
ये कहती हैं कसक है उसे तुम्हारे दूर होने का
लेकिन ये सर्द हवाएं तुम्हें पास लिए हैं आयीं
अब तुम हो यहाँ और मैं भी यही हूँ
मेरी दुनिया है देखो खुशियों में नहाई"
पन्ने भी हैं,
उन में कुछ बातें भी हैं,
कुछ कसक, कुछ नवाज़िशें हैं,
पर एक बात समझ नहीं आई
मैं कौन, तुम कौन है?
"कहने को है अजनबी,
पर इन सर्द हवाओं के बीच
तुम भी अकेले से हम भी अकेले से
चलों क्यों न एक दुसरे का आसरा बनाएँ?
तुम हमें अपना कहो हम तुम्हे अपना जाने
छोड़ो दुनिया की भले वो हमें अजनबी माने"
पर अपना कौन होता है?
वो जिसके साथ हम हसें गायें,
या वो जिसका सहारा लिए
दिल तोड़ा रो लेना चाहे?
"कैसे कहूँ,
कौन है अपना
लेकिन,
अगर तुम हँसना जो चाहो
गर कुछ कहना भी चाहो
सारी रात तुमको मैं सुनता रहूँगा
हो जाये कुछ पल को दिल तुम्हारा भी भारी,
रख के कांधे पे सर को कुछ देर रो लेना
तुम चाहो गर बातें बताना मुझे भी
हो मुश्किल अल्फाज़ो का बाहर निकलना
तुम्हारी सिसकियों से मैं बाते करता रहूँगा..."
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