Saturday, September 30, 2017

YOURS TRULY


Dear,
It’s been a while.
Let’s have a cup of coffee,
let’s go back to our hiding,
and listen to the silence
that takes you through smiles.
It’s been a while
Since you took a picture,
Since you thought you’re beautiful,
Since you went to the library
and left a note for the next reader.
It’s been a while,
you’ve lost your epitome of hope,
you’ve misplaced your vibrant aura,
you’ve forgotten to replace
uncertainty with hope.
I know it’s been a while
or maybe a little longer,
or maybe the longest ever;
but you’ve got to now
look at the rainbows of your life,
wonder at the pages left
and all the places they’ll lead.
Pour out to me all, dear,
that still puts you through the ache,
and I’ll gently hum around your heart
till you fall into your dream each day.
Because, there is a story of your life,
Of your worries and despair,
a battle for you to fight.
And I hope you fill the pages right.
Much love, Yours truly.

Friday, September 15, 2017

जाने कितनी याद आयी होगी


न जाने कितनी बार घर का ताला खोलते हुए आपको सिर्फ़ घंटी बजा देने का मन हुआ होगा,

कितनी बार पानी का गिलास भरते हुए वो टेबल पर रखा पानी का भरा गिलास याद आया होगा,

वही सब्ज़ी और ब्रेड दिन में तीनों वक़्त खाते हुए आपको कितनी बार वो रसोई याद आई होगी,

न जाने कितनी बार आपको हम सब की और उस घर की याद आई होगी। 


न जाने कितनी बार सुबह उस अलार्म की जगह आपको हमारी आवाज़ सुनने का मन हुआ होगा,

कितनी बार वो चाय की प्याली जो आपको तैयार मिलती थी, याद आई होगी,

वो माँ याद आई होंगी जो अक़्सर ज़बरदस्ती आपकी थाली में एक और रोटी डाल दिया करती थीं,

न जाने कितनी बार आपको हम सब की और उस घर की याद आयी होगी। 


न जाने कितने रविवार फ़िर हमारे ज़िद की आवाज़ें सुनने का मन हुआ होगा,

फिर बस एक फ़ोन से ही अपने मन को संतुष्ट कर आपको मुस्कुराना पड़ा होगा,

वो झगड़े और लड़ाइयाँ जिन्हें रोकते कभी आप थकते नहीं थे, याद आईं होंगी,

न जाने कितनी बार आपको हम सबकी और उस घर की याद आई होगी।


न जाने कितनी बार रात के उस अंधेरे में अपने बच्चों के साथ खेलने का मन हुआ होगा,

कितनी बार खाना अकेले खाते हुए वो सन्नाटा आपके कानों में चुभा होगा,

वो जिसे सुन कर आप आराम से अपना काम  करत रहते थे, वो चिलचिलाहट याद आयी होगी,

न जाने कितनी बार आपको हम सब की और उस घर की याद आयी होगी।


न जाने कितनी बार बाज़ार में कुछ सामान देख उसे हमारे लिए लेने का मन हुआ होगा,

कितनी बार हमारे लिए दो महिने पहले लेकर रखा सामान आपको हमारी याद दिलाता होगा,

वो कोने में पड़ी चादर हर रोज़ घर की कुछ अलग कहानी सुनाती होगी,

न जाने कितनी बार आपको हम सब की और उस घर की याद आयी होगी।


न जाने कितनी बार हमे एक बार फिर गले लगाने का मन हुआ होगा,

कितनी बार सब पीछे छोड़ हमारे पास वापस चले आने का सोचा होगा,

वो आईने ने भी हमारी मुस्कान आपको हर रोज़ दिखाई होगी,

न जाने कितनी बार आपको  हम सब की और उस घर की याद आयी होगी।


न जाने कितनी बार हमारा भी आपके पास आ जाने का मन हुआ होगा,

कितनी बार आपके गोद में सर रख रोने को दिल ने चाहा होगा, 

वो आपके साथ बिताई हर दिवाली जाने कितनी बार हमने भी दिल ही दिल दोहराई होगी,

पापा, शायद उतनी ही बार हम सब को और उस घर को भी आपकी याद आयी होगी।