Sunday, April 29, 2018

दिल

कुछ बातें ऐसी होती हैं जो अमावस्या की रात को भी चांदनी से महका देती हैं. ये कविता भी कुछ ऐसी ही रात को लिखी थी मैंने -

बहुत भागा है आज ये,
सही और ग़लत के बीच
की दौड़ में भागा है आज,
अब थक गया है.
पर धीमे से कह रहा है
के अभी थोड़ा  सा
और भागना चाहता है.
कैसे समझाऊँ इसे के
अब एक और कदम बढ़ाया
तो गिर जायेगा.
चोट लग जाएगी,
और फिर ये बहुत रोयेगा.
एक बार तुम कोशिश करके देखोगे?
शायद ये तुम्हारी बात मान जाये.

Tuesday, April 24, 2018

अधूरी मुलाकात

ये रात थोड़ी अजीब है,
सर्द स्याह बेजान सी लगती है.

"क्यू तुम्हे कुछ याद आया क्या
दूर कोई पपिहा कुछ गुनगुनया क्या
फिर किसने छेड़ा है राग दिल का
रात क्यू सर्द लगी आज की?"

मालूम ऩही, 
कुछ हलचल सी है
कुछ गुमसूँ सी है 
जैसे कुछ घबराई हुई सी है

"ये हलचल नहीं,
ये पहला संदेशा तुमने है पाया
इन सर्द हवाओं ने तुम्हें है पहुँचाया
ये प्रीत की पहली चिठी लिखी होगी उसने"

क्या संदेश है उसमे?
तुम जानते हो क्या?
कुछ बुरा तो नही है?
सब ठीक होगा ना?

"पन्ने तो नए हैं, सुर्ख गुलाबी रंगों के,
कई सिलवटे भी पड़ी है इनपे करारी
ये कहती हैं कसक है उसे तुम्हारे दूर होने का
लेकिन ये सर्द हवाएं तुम्हें पास लिए हैं आयीं
अब तुम हो यहाँ और मैं भी यही हूँ
मेरी दुनिया है देखो खुशियों में नहाई"

पन्ने भी हैं, 
उन में कुछ बातें भी हैं, 
कुछ कसक, कुछ नवाज़िशें हैं, 
पर एक बात समझ नहीं आई
मैं कौन, तुम कौन है?

"कहने को है अजनबी,
पर इन सर्द हवाओं के बीच 
तुम भी अकेले से हम भी अकेले से
चलों क्यों न एक दुसरे का आसरा बनाएँ?
तुम हमें अपना कहो हम तुम्हे अपना जाने
छोड़ो दुनिया की भले वो हमें अजनबी माने"

पर अपना कौन होता है?
वो जिसके साथ हम  हसें गायें, 
या वो जिसका सहारा लिए 
दिल तोड़ा रो लेना चाहे?

"कैसे कहूँ,
कौन है अपना
लेकिन,
अगर तुम हँसना जो चाहो 
गर कुछ कहना भी चाहो
सारी रात तुमको मैं सुनता रहूँगा
हो जाये कुछ पल को दिल तुम्हारा भी भारी,
रख के कांधे पे सर को कुछ देर रो लेना
तुम चाहो गर बातें बताना मुझे भी
हो मुश्किल अल्फाज़ो का बाहर निकलना
तुम्हारी सिसकियों से मैं बाते करता रहूँगा..."


Thursday, April 19, 2018

तुम्हारे लिए


तुमने कहा कुछ लिखने को,
तुम्हारे लिए, तुमको लिए,
पहले तो मैंने अनसुना किया,
क्योंकि,
मुझे लगता है
कठिन है तुमको शब्दों में पिरोना,
फिर भी,
चलो शुरू करता हूँ तुम्हें उनमें संजोना।
तुम अलकनंदा सी चंचल,
मलय समीर सी निश्छल,
उमड़ते घुमड़ते बादलों जैसे भाव,
तुम्हारा अपनापन ऐसे जैसे वो छोटा सा गांव,
तुम संजिली हो, सुंदर हो उन फूलों जैसे,
जो कश्मीरी वादियों में लहरें ऐसे तैसे,
तुम उन नीले झीलों माफिक गहरी और सजल,
मुझे लगी उस हिमालय सी निडर और सबल,
तुम अद्वैत का दिव्य दर्शन लिए,
तुमने ही तो द्वैत द्वंद के सारे वर्णन किये,
तुम अकुलाती हुई उस बच्चे जैसे,
तुममें विविधता लिए स्वप्न कैसे-कैसे,
तुम उस इठलाते हुए शिखर को ढहाने को तत्पर,
फिर तैयार हो उसको उठाने से उसपर,
मैं नाहक ही डरता अपनी बात रखने में,
क्योंकि सागर सी सहजता मैंने तुम में पाया,
तुमने उसे अपनाया, जिसे सबने ठुकराया,
ये असीम विशालता तुम्ही में-तुम्ही में,
मैंने खोजा कहाँ कहाँ, मैंने ढूंढा यहाँ वहाँ,
अपने प्रश्नों का उत्तर तुम्हीं से तो पाया।
अब भी है असमंजस,
तुमसे न्याय कर पाया हूँ क्या?
तुम्हें पूर्ण कर पाया हूँ क्या?
सुना है कोई पूर्ण नहीं,
लेकिन तुम तो हो,
तो क्या यह स्वप्न है,
जो मैं जी रहा तुम्हारे साथ?
जो भी हो
लेकिन मेरे लिए यह पूर्ण और सुंदर है।

#BeyondComplete

Sunday, April 15, 2018

सुनो


सुनो,
और दिल करे तो हंस लेना,
ना करे तो बस मुस्कुरा लेना,
वो भी ना मान हो
तो ये सोच लेना के
मैं बुद्धू हूँ, बच्ची हूँ,
बिना सर-पैर की बातें करती हूँ,
कुछ भी कहती हूँ.
नहीं,
मैं बुरा नहीं मानूँगी.
तुम्हारे बारे में भी
बुरा नहीं सोचूँगी.
कुछ सवाल हो तो पूछ लेना,
ईत्मेनान से दुबारा समझा दूँगी.
तुम्हे बकवास लगे तो तुम
बेझिझक कह देना,
मैं फिर भी हल्का सा हंस लूँगी.

अच्छा अब बात तो सुनो,
शुक्रिया”,
मेरे यतीम ख्वाबों को सुन
उनकी झूटी ही सही
तारीफ करने के लिए;
मेरी बेगानी सी बातों पर
तकल्लुफ भरी ही सही
मुस्कान भेजने के लिए;
कुछ वक़्त के लिए ही सही
मुझे झेल लेने के लिए;
मेरी बेतुकी बातों को सुन लेने के लिए;
मेरी ज़िद्द को मान लेने के लिए;
मुझसे अपना छोटा सा डर
बाँट लेने के लिए.
शुक्रिया,
मुझे मुझी को
सौगात में लौटा देने के लिए.
अब, इन सब का मैं
पूरा ख़याल रखूँगी, पक्का.  

Saturday, April 14, 2018

जाने क्यूँ


मैने फिर कुछ कहा तुमसे,
तुमने फिर जवाब नहीं दिया,
हम फिर मिले,
फिर मुस्कुराए,
तुमने फिर रुला दिया.
हम तुम्हें अपनाते रहे,
तुमने भी हमें
थोड़ा सा अपना बना लिया,
पर जब झटक के हमें
दूर किया तुमने,
हमने भी तुम्हे भुला दिया.

जाने क्यूँ फिर भी
आज तुम्हारी याद आई है.
इससे कहो ना के
मेरे पास ना आए,
ना रुलाए, ना सताए,
कहो ना इसे के वो तुम्हारी है,
तुम्हारे पास लौट जाए!

She Talks A Lot


She moaned her way
out of the dark,
with a fledging identity,
and an impeccable strength embarked,
towards an utterly-buttery
swamp driven land of a while,
incessantly guided by Poseidons
ever-grateful heavenly smile.
Surprised, she looked down,
beneath her feet,
a ripple of water
just formed the street.
She pushed through a little,
yes, it was a water pool,
and went down a little deeper,
slowly and steadily some more;
By the corner,
rolled up in a bow,
Just for You, she found a note:
You left Hope here,
in the pool the other day.
She talks a lot.
Shes made the old me jovial again.
She told me about you as well,
about the tiara of memories you carry,
and some dreadful horrific nights too.
I was enjoying the
dearth of all your stories
until I saw you again yesterday,
when you seemed lost without her.
So, Ive put her in a bottle,
thought you need her more than I do,
and am leaving her here,
you can take her back with you.
She startled,
she awoke,
she was out of the pool,
she had hysterically found hope!

उसे फिर नज़र लग गयी


तुम्हारे घर पर नाचते-गाते समय
ही मैने उसे आखरी बार देखा था।
उस समय तो सही सलामत थी।
घर आकर फिर देखा तो मिली नहीं,
शायद, वहीं कहीं गिरी होगी।
किचन में कॉफी बनाने गयी थी ना में,
कहीं फ्रिज से दूध निकालते हुए
वहाँ तो नहीं रह गयी?
या हो सकता है के किताबें
निकालते हुए वहीं ड्रॉयर में छूट गयी होगी।
एक बार देख कर बताओ ना तुम
उसके बिना अजीब सा लग रहा है।
नज़र लगी गयी मेरी ‘मुस्कान’ को उनकी।
उस दिन के बाद से मिल ही नहीं रही।
तुम वहाँ जल्दी देखकर बताना,
अगर मिल जाए तो
संभाल कर रख लेना,
मैं कल आ कर ले जाऊँगी।