Thursday, April 19, 2018

तुम्हारे लिए


तुमने कहा कुछ लिखने को,
तुम्हारे लिए, तुमको लिए,
पहले तो मैंने अनसुना किया,
क्योंकि,
मुझे लगता है
कठिन है तुमको शब्दों में पिरोना,
फिर भी,
चलो शुरू करता हूँ तुम्हें उनमें संजोना।
तुम अलकनंदा सी चंचल,
मलय समीर सी निश्छल,
उमड़ते घुमड़ते बादलों जैसे भाव,
तुम्हारा अपनापन ऐसे जैसे वो छोटा सा गांव,
तुम संजिली हो, सुंदर हो उन फूलों जैसे,
जो कश्मीरी वादियों में लहरें ऐसे तैसे,
तुम उन नीले झीलों माफिक गहरी और सजल,
मुझे लगी उस हिमालय सी निडर और सबल,
तुम अद्वैत का दिव्य दर्शन लिए,
तुमने ही तो द्वैत द्वंद के सारे वर्णन किये,
तुम अकुलाती हुई उस बच्चे जैसे,
तुममें विविधता लिए स्वप्न कैसे-कैसे,
तुम उस इठलाते हुए शिखर को ढहाने को तत्पर,
फिर तैयार हो उसको उठाने से उसपर,
मैं नाहक ही डरता अपनी बात रखने में,
क्योंकि सागर सी सहजता मैंने तुम में पाया,
तुमने उसे अपनाया, जिसे सबने ठुकराया,
ये असीम विशालता तुम्ही में-तुम्ही में,
मैंने खोजा कहाँ कहाँ, मैंने ढूंढा यहाँ वहाँ,
अपने प्रश्नों का उत्तर तुम्हीं से तो पाया।
अब भी है असमंजस,
तुमसे न्याय कर पाया हूँ क्या?
तुम्हें पूर्ण कर पाया हूँ क्या?
सुना है कोई पूर्ण नहीं,
लेकिन तुम तो हो,
तो क्या यह स्वप्न है,
जो मैं जी रहा तुम्हारे साथ?
जो भी हो
लेकिन मेरे लिए यह पूर्ण और सुंदर है।

#BeyondComplete

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