Sunday, April 29, 2018

दिल

कुछ बातें ऐसी होती हैं जो अमावस्या की रात को भी चांदनी से महका देती हैं. ये कविता भी कुछ ऐसी ही रात को लिखी थी मैंने -

बहुत भागा है आज ये,
सही और ग़लत के बीच
की दौड़ में भागा है आज,
अब थक गया है.
पर धीमे से कह रहा है
के अभी थोड़ा  सा
और भागना चाहता है.
कैसे समझाऊँ इसे के
अब एक और कदम बढ़ाया
तो गिर जायेगा.
चोट लग जाएगी,
और फिर ये बहुत रोयेगा.
एक बार तुम कोशिश करके देखोगे?
शायद ये तुम्हारी बात मान जाये.

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